शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

टूटता तारा


आकाश में टूटते हुए तारे को देखकर नन्हीं नीना ने झट से अपनी आंखें बंद कर ली और हाथ  जोड़कर मांगने लगी ।"बस एक रोटी आज के लिए और एक कल के लिए ।"

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

रविवार, 3 मई 2015

डमडम और बोली

चंपकवन  नाम  के  जंगल में  बहुत  सारे  जानवर  रहते थे।  उन्हीं  जानवरों  में  से  दो  जानवर  थे   डमडम  और बोली। डमडम  हाथी  था और  बोली  थी  एक  प्यारी सी , नन्ही सी गिलहरी। डमडम और बोली में  बहुत  अच्छी  दोस्ती  थी। सारे  जानवर  उन्हें  देख - देखकर  खुश  होते  रहते  थे। बोली गिलहरी  दिनभर  डमडम हाथी  की  पीठ पर सवार होकर  घूमा  करती थी और  पूरे  जंगल के  चक्कर  लगाया  करती थी। एक समय  ऐसा  आया कि  बोली  गिलहरी के  मन में  घमंड  आ  गया कि  डमडम हमेशा  मेरे  पांव  के  नीचे  रहता है और  मैं  उसके  सिर पर  सवार  रहती हूँ। विचार  तो  सच्चाई  से  अलग  था  पर वह  अपने  आप को  सर्वश्रेष्ठ  समझने लगी। कभी  वह  डमडम के ऊपर  हुक्म  चलाती  कभी  उसे  नीचा दिखाती डमडम सब कुछ  समझबूझ  कर  भी अपनी  इतनी  पुरानी  दोस्ती का  लिहाज  कर  शांत  रहता थाऔर  उसकी  बातें  सुनकर  हँस  देता था। 

     बोली  का  घमंड  देखकर  सारे  जानवर  पीठ  पीछे  उसका  मजाक  उड़ाते  थे  व  सामने  उसे  आता  देखकर उसे  सलाम करते हुए  हँसते थे। यह  देखकर  बेवकूफ़  बोली  समझती वह  उसकी  श्रेष्ठता  स्वीकार कर  रहे हैं।
एक दिन  जंगल में  बहुत  भारी  तूफान  आया। बिजली  बार  बार  कड़क  रही  थी बोली  जिस  पेड़ पर  रहती थी  उस पर  अचानक से  ज़ोर  की  कड़कड़ाहट के  साथ बिजली आ  गिरी।  पेड़  धू धू कर के  जलने  लगा  और  बोली  को  कुछ नहीं  समझ  में  आ  रहा  था कि वह  क्या करे? उसका  दम  धुएँ से  घुटने  लगा।  उसी समय  अपने  दोस्त  डमडम की सूँड  दिखाई  दी।  बेहोश होने  से पहले  उसे भीगने का  अहसास हुआ।।  डमडम  ने सूँड़  से  पानी  डाल  - डालकर  आग  बुझा  दी थी। जब  बोली  ने  आँख  खोली  तो  उसे  अपने  प्रिय  मित्र  डमडम  का  चिंतित  चेहरा  दिखाई  दिया। बोली  ने डमडम  को  देखकर  प्यारी सी  मुस्कान  दी। वह  समझ  चुकी  थी  कि  मित्रता  में  प्यार  होना  सबसे  ज़रूरी है  न कि  छोटा  - बड़ा  होना। 

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

कृष्ण और उनकी बाँसुरी




भगवान  श्रीकृष्ण  जब  भी  अपने  बगीचे में  जाते  हर  किसी  फूल  व पौधे  से  एक  ही  बात  कहते  "मैं  तुमसे प्यार करता हूँ।" सभी  खुश  हो  जाते।  एक दिन  अचानक से  भगवन्  आए  और   बाँस  के  पौधे  से कहने  लगे , "तुम्हें  अपने आप को मुझपर   न्योछावर  करना होगा।" बाँस के  पौधे  ने  पूछा, "प्रभु  क्या  कोई  और विकल्प नहीं ?"
कृष्ण  ने कहा, " दूसरा  और  कोई  रास्ता नहीं।"  उसने कहा, "जी  प्रभु।" उसने  अपने  आप को  समर्पित कर दिया। जब  श्रीकृष्ण  जी  ने  उसे  काटा, उसमें  छेद किया उसकी चीख  निकली ,  कराह  निकली, आँसू  निकले लेकिन  जब बाँसुरी  का  रूप ले  वह  तैयार  हुआ  तो सदैव  ही  भगवन् के साथ  रही,  अधरों पर  सजी  रही।  प्रभु ने  उससे  इतना  प्रेम  किया  कि  राधा व गोपियाँ  तक  उससे  डाह  करती  रहीं।
सभी ने  उससे  प्रश्न   पूछा, "क्या  बात है कि  भगवन्  तुम्हें इतना  प्यार  करते हैं ?" उसने जवाब दिया, "मैं भीतर से  खोखली(खाली) हूँ । मेरे  अंदर  अपना  कुछ  नहीं है ।  मैं  पूरी तरह से  उनपर  समर्पित  हूँ वह  मेरा  पूरा  उपयोग  कर सकते हैं इसलिए मैं  उनकी  प्रिय  हूँ।"
यही  पूर्ण  समर्पण  कहलाता है  जहां  ईश्वर  जो  मन  चाहे  तुम्हारे  साथ  कर  सकता है। ईश्वर  की  जो   आज्ञा  है  वह  तुम्हें  मानना है। तुम्हें अपने आप को  पवित्र  करने की  कोई  आवश्यकता  नहीं है। तुम्हें  बस  समर्पण  करना है क्योंकि  जो  वास्तव में  तुम्हारा है,  वह  उसका  ही है।