मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

कृष्ण और उनकी बाँसुरी




भगवान  श्रीकृष्ण  जब  भी  अपने  बगीचे में  जाते  हर  किसी  फूल  व पौधे  से  एक  ही  बात  कहते  "मैं  तुमसे प्यार करता हूँ।" सभी  खुश  हो  जाते।  एक दिन  अचानक से  भगवन्  आए  और   बाँस  के  पौधे  से कहने  लगे , "तुम्हें  अपने आप को मुझपर   न्योछावर  करना होगा।" बाँस के  पौधे  ने  पूछा, "प्रभु  क्या  कोई  और विकल्प नहीं ?"
कृष्ण  ने कहा, " दूसरा  और  कोई  रास्ता नहीं।"  उसने कहा, "जी  प्रभु।" उसने  अपने  आप को  समर्पित कर दिया। जब  श्रीकृष्ण  जी  ने  उसे  काटा, उसमें  छेद किया उसकी चीख  निकली ,  कराह  निकली, आँसू  निकले लेकिन  जब बाँसुरी  का  रूप ले  वह  तैयार  हुआ  तो सदैव  ही  भगवन् के साथ  रही,  अधरों पर  सजी  रही।  प्रभु ने  उससे  इतना  प्रेम  किया  कि  राधा व गोपियाँ  तक  उससे  डाह  करती  रहीं।
सभी ने  उससे  प्रश्न   पूछा, "क्या  बात है कि  भगवन्  तुम्हें इतना  प्यार  करते हैं ?" उसने जवाब दिया, "मैं भीतर से  खोखली(खाली) हूँ । मेरे  अंदर  अपना  कुछ  नहीं है ।  मैं  पूरी तरह से  उनपर  समर्पित  हूँ वह  मेरा  पूरा  उपयोग  कर सकते हैं इसलिए मैं  उनकी  प्रिय  हूँ।"
यही  पूर्ण  समर्पण  कहलाता है  जहां  ईश्वर  जो  मन  चाहे  तुम्हारे  साथ  कर  सकता है। ईश्वर  की  जो   आज्ञा  है  वह  तुम्हें  मानना है। तुम्हें अपने आप को  पवित्र  करने की  कोई  आवश्यकता  नहीं है। तुम्हें  बस  समर्पण  करना है क्योंकि  जो  वास्तव में  तुम्हारा है,  वह  उसका  ही है। 

1 टिप्पणी: